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हिन्दी साहित्य का माध्यमिककाल/रामानंद अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्वारा रचित पुस्तक हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास का एक अंश है। इस पुस्तक का प्रकाशन १९३४ ई॰ में पटना विश्वविद्यालय, पटना द्वारा किया गया था।


" कबीर साहब के समकालीन कुछ ऐसे सन्त और महात्मा हैं कि जिनकी चर्चा हुये बिना पन्द्रहवीं इसवी शताब्दी की न तो सामयिक अवस्था पर पूरा प्रकाश पड़ेगा न साहित्यिक परिवर्तनों पर। अतएव अब मैं कुछ उनके विषय में भी लिखना चाहता हूं। किन्तु उनके यथार्थ परिचय के लिये यह आवश्यक है कि स्वामी रामानन्द के उस समय के धार्मिक पग्वित्तनों और सामाजिक सुधारों से अभिज्ञता प्राप्त करली जावे। इसलिये पहले मैं इस महापुरुष के विषय में ही कुछ लिखता हूं। जिस समय स्वामी शंकराचाय्य के अद्वैतवाद ने भारतवर्ष में वैदिक धर्म का पुनरुज्जीवन किया और जब उसकी विजय वैजयन्ती हिमालय में कुमारी अन्तरीप तक फहरा रही थी। उस समय केवल ज्ञान मार्ग में संतोष न प्राप्त कर अनेक सन्तमहात्मा एक ऐसी भक्तिधाग की खोज में थे जो दार्शनिक जीवन को सरस बना सके। निर्गुण ब्रह्म अनुभव गम्य भले ही हो किन्तु वह सर्व साधारण का बोध गम्य नहीं था।..."(पूरा पढ़ें)