हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास
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RAMDIN READERSHIP LECTURES : 1930-31
BY
PANDIT AYODHYA SINGH UPADHYAYA
Professor of Hindi, Hindu University, Benares.
PUBLISHED BY
THE PATNA UNIVERSITY
1934
ॐ
और उसके
साहित्य का विकास ।
अर्थात्
बाबू गमदीनसिंह रीडरशिपके सम्बन्धसे पटना यूनीवर्सिटीमें दियेगये
पण्डित अयोध्यासिंह उपाध्याय (हरिऔध)
प्रोफेसर हिन्दू यूनीवर्सिटी बनारस
के
व्याख्यानों का संग्रह
_______
मुद्रक
बाबू मानिक लाल
दी युनाईटेड प्रेस. लिमिटेड, भागलपुर ।
परिशिष्ट।
इस ग्रंथ के पृष्ट १३ में मैंने यह प्रतिपादन किया है, कि आर्य-जातिका मूल निवास-स्थान भारतवर्ष ही है, वह किसी दूसरे स्थान से न तो आई है, और न वह उसका उपनिवेश है। इसकी पुष्टि के कुछ और प्रमाण नीचे लिखे जाते हैं—
विद्वद्वर श्रीनारायण भवनराव पावगी मराठी भाषा के प्रकाण्ड विद्वान् हैं, उन्हों ने अंगरेज़ी में एक गवेषणापूर्ण ग्रंथ लिखा है, उसका नाम है 'दि आर्यावर्टिक होम एण्ड दि आर्यन क्रेडल इन दि सप्टसिंधु'। इस ग्रंथका अनुवाद हिन्दी भाषा में हो गया है, उसका नाम है 'आर्य्यों का मूल स्थान', उसके कुछ अंश ए हैं—
'एम॰ लुई जैकोलिअट लिखते हैं, भारत संसार का मूल स्थान है, वह सब की माता है। 'भारत, मानव-जाति की माता, हमारी सारी परम्पराओं का मूल स्थान प्रतीत होता है, इस प्राचीन देशके सम्बन्ध में, जो गोरी-जाति का मूल-स्थान है, हमने सत्य बात का पता पाना प्रारंभ कर दिया है। पृष्ट ३५
फ़रासीस विद्वान् क्रूज़र स्पष्ट शब्दों में लिखते हैं—
"यदि पृथ्वी पर ऐसा कोई देश है, जो मानव-जाति का मूल-स्थान या कमसे कम आदिम सभ्यता का लीलाक्षेत्र होने के आदर का दावा न्यायतः कर सकता है, और जिसकी वे समुन्नतियां और उसमें भी परेविद्याकी वे न्यामतें जो मनुष्य जाति का दूसरा जीवन हैं, प्राचीन जगत के सम्पूर्ण भागों में पहुंचाई गई हैं, तो वह देश निस्सन्देह भारत है" पृष्ट ७३
एक दूसरे स्थान पर उक्त फ़रासीस विद्वान जैकोलिअट यह लिखते हैं—
"भारत संसार का मूल-स्थान है, इस सार्वजनिक माता ने अपनी सन्तानको नितान्त पश्चिम ओर भी भेजकर हमारी उत्पत्ति सम्बंधी अमिट प्रमाणों में, हमलोगों को अपनी भाषा, अपने कानून, अपना चरित्र, अपना साहित्य और अपना धर्म प्रदान किया है।" पृ॰ ७४
मिस्टर म्यूर कहते हैं—
"जहांतक मैं जानता हूं, किसी भी संस्कृत पुस्तक में, अत्यन्त प्राचीन पुस्तक में भी भारतीयों की विदेशी उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट उल्लेख या संकेत नहीं है" पृ॰ १८२[१]
मोशियोलुई जैकोलिअट एक दूसरे स्थान पर यह लिखते हैं—
'योरप की जातियां भारतीय उत्पत्ति की हैं, और भारत उनकी मातृभूमि है, इसका अखण्डनीय प्रमाण स्वयम् संस्कृत भाषा है। वह आदिम भाषा (संस्कृत) जिससे प्राचीन और अर्वाचीन मुहावरे निकले हैं। 'पुरातन देश (भारत) गोरी-जातियों का उत्पत्ति स्थान था, और जगत का मूल स्थान है'। पृष्ट २७३
गंगा मासिक पत्रिका के पुरा तत्वांक में जो माघ सम्वत् १९८९ में निकली है, डाक्टर अविनाशचन्द्र दास एम॰ ए॰, पी॰ एच॰ डी॰ का एक लेख आर्य्यों के निवास-स्थान के विषय में निकला है, उसमें एक स्थान पर वे यह लिखते हैं—
"आधुनिकनृतत्ववित् पाश्चात्य पण्डितों का मत है कि वर्त्तमान पंजाब और गांधार देश मानव-जाति का उत्पत्ति-स्थल है। प्रसिद्ध नृतत्ववित् अध्यापक सर आर्थर कीथ का मत है कि भारत के उत्तर पश्चिम, सीमान्त प्रदेश में मानव-जाति की उत्पत्ति हुई है। दूसरे नृतत्ववित् अध्यापक जे॰ बी॰ हालडेन ने लण्डन की 'रायल इन्सटिट्यूशन' नामक सभा में २१-२-३१ को यह व्याख्यान दिया था[२]। पृथ्वीके भिन्न भिन्न चार केन्द्रों में मानव-जाति की उत्पत्ति हुई थी। उनमें पंजाब और अफगानिस्तान का मध्यवर्ती प्रदेश भी मानव-जनन का एक केन्द्र है। भिन्न भिन्न केन्द्रों में (जैसे चीन और मिश्र में) भिन्न भिन्न जातियों की उत्पत्ति हुई है। पंजाब और गांधार में जिस मानव-जाति की उत्पत्ति हुई थी उसके वंशधर गण आज कहां हैं? ऋग्वेद के अति प्राचीन मंत्रों की आलोचना करनेसे मेरे विचार में ऐसा आता है कि पंजाब और गांधार में ही आर्य्यों की उत्पत्ति हुई थी एवं यही प्रदेश इनकी आदि उत्पत्ति का स्थान (Cradle) है। अपने सृष्टि-काल में आर्य्य-जाति यहीं बसती थी, पीछे भिन्न भिन्न प्रदेशों में फैली।" पृष्ट ८४, ८५
खंड | प्रकरण | विषय | पृष्ठ |
---|---|---|---|
प्रथम खंड | प्रथम प्रकरण | भाषा की परिभाषा | १ |
दूसरा प्रकरण | हिन्दी भाषा का उद्गम | ७ | |
तीसरा प्रकरण | अन्य प्राकृत भाषाएँ और हिन्दी | ३० | |
चौथा प्रकरण | आर्यभाषा परिवार | ५३ | |
पाचवाँ प्रकरण | अंतरंग और बहिरंग भाषा | ७० | |
छठा प्रकरण | हिन्दी भाषा की विभक्तियाँ सर्वनाम और उसकी क्रियाएँ | ७८ | |
सप्तम प्रकरण | हिन्दी भाषा पर अन्य भाषाओं का प्रभाव | ९२ | |
द्वितीय खंड | प्रथम प्रकरण | साहित्य | १०५ |
दूसरा प्रकरण | हिन्दी साहित्य का पूर्वरूप और आरंभिक काल | ११० | |
तीसरा प्रकरण | हिन्दी साहित्य का माध्यमिककाल | १३४ | |
चौथा प्रकरण | उत्तर-काल (१) | ३१७ | |
वर्तमान-काल (२) | ५४३ | ||
तीसरा खंड | पहिला प्रकरण | गद्य मीमांसा | ६१२ |
गद्य-विभाग | |||
दूसरा प्रकरण | आर्यकाल | ६१६ | |
तीसरा प्रकरण | विकास-काल | ६२० | |
चौथा प्रकरण | विस्तार-काल | ६२७ | |
पांचवां प्रकरण | प्रचार-काल | ६६० |
खंड | प्रकरण | विषय | पृष्ठ |
---|---|---|---|
छठां प्रकरण | वर्तमान-काल | ६८७ | |
१—साहित्य-विभाग | ६८८ | ||
२—नाटक | ६९२ | ||
३—उपन्यास | ६९४ | ||
४—जीवन-चरित्र | ६९७ | ||
५—इतिहास | ६९९ | ||
६—धर्मग्रंथ | ७०१ | ||
७—विज्ञान | ७०३ | ||
८—दर्शन | ७०४ | ||
९—हास्यरस | ७०५ | ||
१०—भ्रमण वृतान्त | ७०७ | ||
११—अर्थ-शास्त्र | ७०८ | ||
१२—समालोचना संबंधी ग्रंथ | ७०९ | ||
१३—उन्नति संबंधी उद्योग | ७११ | ||
१४—अनुवादित प्रकरण | ७११ | ||
१५—बाल-साहित्य | ७१२ | ||
१६—संगठित संस्थाएँ | ७१२ | ||
१७—कतिपय प्रसिद्ध प्रेस | ७१५ | ||
१८—पत्र और पत्रिकाएँ | ७१७ |
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- ↑ That is so far as I know none of the Sanskrit books not even the most ancient contain any distinct reference or allusion to the foreign origin of the Indians. Muir's Sanskrit text book vol. 2 P. 323.
- ↑ "The origin of civilisation occurred independently in different places one probably in Egypt and another some where between Afghanistan and the Punjab". He further said that it was generally belived that the cradle of the human race was one particular place namely, the garden of Eden and perhaps in Egypt, China or elsewhere. It now seemed probable however that humanity began in four different places with each race distinct from the others.