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रणजीत सिंह प्रेमचंद द्वारा रचित १५ महापुरुषों के जीवन-चरित संग्रह कलम, तलवार और त्याग का एक अध्याय है। इसका पहला संस्करण १९३९ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था।


"रणजीतसिंह का वैयक्तिक जीवन सुन्दर और स्पृहणीय नहीं कहा जा सकता। उन दुर्बलताओं में उन्होंने बहुत बड़ा हिस्सा पाया था जो उस ज़माने में शरीफ और रईसों के लिए बड़प्पन की सामग्री समझी जाती थीं। और जिनसे यह वर्ग आज भी विमुक्त नहीं है। इनके ९ विवाहित रानिया थीं और ९ रखेलियाँ थीं। लौडियों की संख्या तों सैकड़ों तक पहुँचती थी। विवाहिता रानियाँ प्रायः प्रभाव शाली सिख-घरानो की बेटियाँ थीं। जिन्हें उनके बाप-भाइयों ने अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए रनिवास में पहुँचा दिया था। इस कारण वहाँ अकसर साज़िशें होती रहती थीं। मद्यपान भी इस समय सिख रईसों का एक सामान्य व्यसन था और महाराज तो राजब के पीनेवाले थे। उनकी शराब बहुत ही तेज होती थी। इस अति मध्पान के कारण ही वे कई बार लकवे के शिकार हुए और अंतिम आक्रमण सांघातिक सिद्ध हुआ। यह हमला १८३० के जाड़े में हुआ और साल भर बाद जान लेकर ही गया। पर इस सांघातिक व्याधि से पीड़ित रहते हुए भी महाराज राजके आवश्यक कार्य करते रहे। उस सिंह का जिसकी गर्जना से पंजाब और अफगानिस्तान काँप उठते थे, सुखपाल में सवार होकर फौन की कवायद देखने के लिए जाना बड़ी ही हृदयविदारक दृश्य थी। हजारों आदमी उनके दर्शन के लिए[ ३१ ] सड़को की दोनों ओर खड़े हो जाते, और उन्हें इस दशा में देखकर करुणा और नैराश्य के आँसू बहाते थे। अंत को मौत का परवाना आ पहुँचा और महाराज ने राजकुमार खड्गसिंह को बुलाकर अपना उत्तराधिकारी तथा राजा ध्यानसिंह को प्रधान मंत्री नियत किया। २५ लाख रुपया गरीब मुहताजों में बाँटा गया! और संध्या समय जब रनिवास में दीपक जलाये जा रहे थे, महाराज के जीवनदीप का निर्वाण हो गया।..."(पूरा पढ़ें)