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अकबर महान प्रेमचंद द्वारा रचित १५ महापुरुषों के जीवन-चरित संग्रह कलम, तलवार और त्याग का एक अध्याय है। इसका पहला संस्करण १९३९ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था।


"आखिरी उम्र में कपूत बेटों ने इस देश-भक्त बादशाह को बहुत-से दगा़ दिये और इसी दुःख मैं वह २० जमादो-उल-आखिर (:: सितम्बर सन् १६०५ ई०) को इस नाशवान् जगत्, को छोड़कर परलोक सिधारा और सिकन्दर के शानदार मक़बरे में अपने उज्ज्वल कीर्ति- कलाप का अमर स्मारक छोड़कर, दफन हुआ। अकबर में यद्यपि चंद्रगुप्त की वीरता और महत्वाकांक्षा, अशोक की साधुता और नियम-निष्ठा और विक्रमादित्य की महत्ता तथा गुण- ज्ञता एकत्र हो गई थी, फिर भी जिस महत्कार्य की नींव उसने डाली थी, वह किसी एक आदमी के बस का न था, और चूँकि उसके उत्तराधिकारियों में कोई उसके जैसे विचार रखनेवाला पैदा न हुआ, इसलिए वह पूरी तरह सफल न हो सका। फिर भी उसके सच्ची लगन से प्रेरित प्रयास निष्फल नहीं हुए और यह उन्हीं का सुफल था कि सामयिक अधिकारियों की इस ओर उपेक्षा होते हुए भी हिन्दू मुसलमान कई शताब्दुियों तक बहुत ही मेल-मिलाप के साथ रहे। और आज के समय में भी जब बिगाड़-विरोध के सामान सब ओर से जमा होकर और भयावनी बाढ़ का रूप धारण कर राष्ट्रीय नौका को डुबाने के लिए भायँ-भायँ करते बढ़ रहे हैं, यदि कोई आशा है तो उसी के मंगल नाम से..."(पूरा पढ़ें)