विकिस्रोत:आज का पाठ/२३ जुलाई
उत्तर-काल/(ख) सगुण भक्त कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्वारा रचित पुस्तक हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास का एक अंश है। इस पुस्तक का प्रकाशन १९३४ ई॰ में पटना विश्वविद्यालय, पटना द्वारा किया गया था।
"इस शताब्दी के भक्ति मार्गवाले सगुणवादी भक्तों की ओर जब दृष्टि जाती है तो सबसे पहले हमारे सामने नाभादासजी आते हैं । वैष्णवों में इनकी रचनाओं का अच्छा आदर है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने शृंगार रस से मुख मोड़कर भक्ति-रस की धारा बहायी और भक्तमाल' नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें लगभग २०० भक्तों का वर्णन है। अपनी रचना में उन्हों ने वैष्णवमात्र को समान दृष्टि से देखा, और स्वयं रामभक्त होते हुए भी कृष्णचन्द्र के भक्तों में भी उतनी ही आदर बुद्धि प्रकट की जितनी रामचन्द्रजी के भक्तों में। उनके विषय में जो कुछ उन्हों ने लिखा है उसमें भी उनके हृदयकी उदारता और पक्षपात हीनता प्रकट होती है। उनका ग्रंथ ब्रजभाषा में लिखा गया है । इसका कारण उसकी सामयिक व्यापकता ही है । प्रियादासजी ने उनके ग्रन्थ पर टीका लिखी है, क्योंकि थोड़े में अधिक बातें कहने से उनका ग्रन्थ दुर्वोध हो गया है।..."(पूरा पढ़ें)