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उत्तर-काल/(क) निर्गुण संत कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्वारा रचित पुस्तक हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास का एक अंश है। इस पुस्तक का प्रकाशन १९३४ ई॰ में पटना विश्वविद्यालय, पटना द्वारा किया गया था।


"अब मैं प्रकृत विषय को लेता हूं, सत्रहवीं शताब्दी के निर्गुणवादी कवियों में मलूक दास और सुन्दरदास अधिक प्रसिद्ध हैं। क्रमशः इनकी रचनायें आप लोगों के सामने उपस्थित करके इनकी भाषा आदि के विषय में जो मेरा विचार है उसको मैं प्रकट करूँगा और विकास सूत्र से उनकी जांच पड़ताल भी करता चलूंगा। मलूकदास जी एक खत्री बालक थे । बाल्यकाल से ही इनमें भक्ति का उद्रेक दृष्टिगत होता है । वे द्रविड़ देश के एक महात्मा बिट्ठल दास के शिष्य थे। इनका भी एक पंथ चला जिसकी मुख्य गद्दी कड़ा में है । भारतवर्ष के अन्य भागों में भी उनकी कुछ गद्दियां पाई जाती हैं। उनकी रचनाओं से यह सिद्ध होता है कि उनमें निर्गुण- वादी भाव था, फिर भी वे अधिकतर सगुणोपासना में ही लीन थे। सच्ची बात तो यह है कि पौराणिकता उनके भावों में भरी थी और वे उसके ..."(पूरा पढ़ें)