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भारत के धन का अपव्यय-समाप्त लाला लाजपत राय द्वारा रचित दुखी भारत का एक अंश है जिसका प्रकाशन सन् १९२८ ई॰ में प्रयाग के इंडियन प्रेस, लिमिटेड द्वारा किया गया था।


"यह बात सच है कि आज भारतवर्ष में ४० हज़ार मील रेल की सड़कें हैं। परन्तु इनका कैसे निर्माण हुआ, कैसे आर्थिक सहायता मिली, कैसे इनका प्रयोग किया जाता है आदि बातों की कथा में निन्दा के अतिरिक्त और कुछ मिल नहीं सकता। भारतीय रेलवे नीति ने भारतवर्ष के हितों की कभी परवाह नहीं की। इनका मुख्य उद्देश्य केवल ब्रिटेन का युद्ध-सम्बन्धी या व्यापारसम्बन्धी स्वार्थ-साधन रहा है। भारतीय रेलों के निर्माण-कर्ता या सञ्चालक अँगरेज़ों के गुट्ट थे जिन्हें कभी किसी प्रकार का घाटा नहीं हुआ। उलटा उन्होंने भारत के कर-दाताओं के सैकड़ों रुपये मूँड़ लिये।..."(पूरा पढ़ें)