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उत्तर-काल अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्वारा रचित पुस्तक हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास का एक अंश है। इस पुस्तक का प्रकाशन १९३४ ई॰ में पटना विश्वविद्यालय, पटना द्वारा किया गया था।


"मैं पहले लिख आया हूं कि हिन्दी-साहित्य-क्षेत्र में सोलहवीं शताब्दी में ही व्रजभाषा को प्रधानता प्राप्त हो गयी थी। और कुछ विशेष कारणों से हिन्दी के कवि और महाकवियों ने उसी को हिन्दी साहित्य की प्रधान भाषा स्वीकार कर लिया था। यह बात लगभग यथार्थ है परन्तु यह स्वीकार करना पड़ेगा कि उत्तर-काल के कवियों की मुख्य भाषा भले ही व्रजभाषा हो, किन्तु उसमें अवधी के कोमल, मनोहर अथच भावमयशब्द भी गृहीत हैं। जो कवि कर्म के मर्मज्ञ हैं वे भली भाँति यह जानते हैं कि अनेक अवस्थाओं में कवियों अथवा महाकवियों को ऐसे शब्द-चयन की आवश्यकता होती है, जो उनको भाव-प्रकाशन में उचित सहायता दे सकें और छन्दोगति में वाधक भी न हों।..."(पूरा पढ़ें)