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हिन्दी साहित्य का माध्यमिककाल/दादूदयाल अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्वारा रचित पुस्तक हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास का एक अंश है। इस पुस्तक का प्रकाशन १९३४ ई॰ में पटना विश्वविद्यालय, पटना द्वारा किया गया था।


"इसी शतक में दादूदयाल जी का आविर्भाव हुआ। उनकी गणना निर्गुणवादी संतों में की जाती है। कोई उनको ब्राह्मण संतान कहता है,कोई यह कहता है कि वे एक धुनियाँ थे जिनको एक नागर ब्राह्मण ने पाला पोसा था। वे जो हों, किन्तु उनका हृदय प्रेममय और उदार था। उनमें दयालुता की मात्रा अधिक थी, इसी लिये उनको दादूदयाल कहते हैं । उनको कलहविवाद प्रिय नहीं था। शान्तिमय जीवन ही उनका ध्येय था, इस लिये उनकी रचनाओं में वह कटुता नहीं मिलती जो कबीर साहब की उक्तियों में मिलती है। उनके ग्रन्थों के पढ़ने से यह ज्ञात होता है कि वे हिन्दू जाति से सहानुभूति रखते थे और उनके देवी-देवताओं और महात्माओं पर व्यंग वाण प्रहार करना उचित नहीं समझते थे। उनका विचार यह था कि संत होने के लिये संत भाव की आवश्यकता है। इस दृष्टि से वे किसी महापुरुष की कुत्सा करके अपने को सर्वोपरि बनाना नहीं चाहते थे। अतएव उनकी रचनाओं में यथेष्ट गंभीरता पायी जाती है।..."(पूरा पढ़ें)