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यलोरा के गुफा-मन्दिर महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित पुस्तक प्राचीन चिह्न का एक अंश है जिसका प्रकाशन १९२९ ई॰ में प्रयाग के इंडियन प्रेस द्वारा किया गया था।


"ये गुफा-मन्दिर पर्वत काटकर उसी की पार्वतीय चट्टानों में, भीतर ही भीतर, गढे गये हैं। इनको बनाने मे बाहर से ईट, पत्थर लाकर नहीं लगाया गया। पहाड़ों में से एक छोटी सी पटिया काटकर निकालने मे कितना भगीरथ प्रयत्न करना पड़ता है; फिर उसको काटकर उसके भीतर मन्दिर खड़ा कर देना कितने कौशल, कितने यत्न और कितने श्रम का काम है, यह कहने की आवश्यकता नहीं।
१ से लेकर ९ नम्बर तक के वौद्ध मन्दिरों मे अनेक मनोहर-मनोहर मूर्तियाँ हैं। कही अवलोकितेश्वर बुद्ध की प्रतिमा है, कही पद्मपाणि की, कही अक्षोभ्य की, और कहीं अमिताभ की। तारा, सरस्वती और मञ्जु श्री आदि शक्तियों की मूर्तियाँ भी ठौर-ठौर पर हैं, उनकी सेवा विद्याधर कर रहे हैं। इन मूर्तियों की बनावट इतनी अच्छी और इतनी निर्दोष है कि किसी-किसी को, इस समय भी, इन्हें देखकर इनके सजीव होने की शङ्का होती है। एक हाथ में माला, दूसरे मे कमल- पुष्प, कन्धे में मृग-चर्म लिये हुए अभय और धर्म-चक्र-मुद्रा में ध्यानस्थ बुद्ध की मूर्तियों को देखकर मन मे अपूर्व श्रद्धा और भक्ति का उन्मेष होता है। ..."([[प्राचीन चिह्न/यलोरा के गुफा-मन्दिर |पूरा पढ़ें]])