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विशेषण कामताप्रसाद गुरु द्वारा रचित हिंदी व्याकरण का एक अध्याय है जिसका प्रकाशन सं॰ १९८४ में इंडियन प्रेस, लिमिटेड "प्रयाग" द्वारा किया गया था।


"जिस विकारी शब्द से संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित होती है उसे विशेषण कहते हैं, जैसे, बड़ा, कला, दयालु, भारी, एक, दो, सब, इत्यादि।
"हिदी व्याकरण" में संज्ञा के तीन भेद किए गये हैं—नाम, सर्वनाम और विशेषण। दूसरे व्याकरणों में भी विशेषण संज्ञा का एक उपभेद माना गया है। इसलिए यहाँ यह प्रश्न है कि विशेषण एक प्रकार की संज्ञा है अथवा एक अलग शब्द-भेद है। इस शंका का समाधान यह है कि सर्वनाम के समान विशेषण भी एक प्रकार की संज्ञा ही है, क्योंकि विशेषण भी वस्तु का अप्रत्यक्ष नाम है।..."(पूरा पढ़ें)