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अकबर महान प्रेमचंद द्वारा रचित १५ महापुरुषों के जीवन-चरित संग्रह कलम, तलवार और त्याग का एक अध्याय है। इसका पहला संस्करण १९३९ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था।


"खैर, ख़ुदा-ख़ुदा करके किसी तरह यह असहाय क़ाफ़िला सिंध के सपाट जंगलों को पार करता हुआ अमरकोट पहुँचा और वहाँ पाँव रखने को जगह भी मिली, पर भेड़िया बने हुए भाई सब ओर से ताक में लगे हुए थे। इस कारण उसे पत्नी को वहीं छोड़ उनके मुकाबले के लिए रवाना होना पड़ा। इस समय बेचारी हमीदा बानू की जो दशा होगी, ईश्वर दुःसमन को भी उसमें न डाले। न तन पर कपड़ा, न पेट के लिए खाना, न कोई मित्र, न सहायक, यहाँ तक कि पति भी ज्ञान के सौदे में लगा हुआ, उस पर पराया देश और पराये लोग। पर जिस तरह गहरे सूखे के समय सब ओर से काली घटाए” उठकर क्षणभर में तृण-से रहित धरती को शस्य-श्यामला बना देती हैं या अचानक घनघोर अन्धकार में दल-बादल फटकर भूमण्डल को प्रभाकर की प्रखर किरणों से आलोकित कर देता है या जिस तरह- सितारा सुबहे इशरत का शबे मातम निकलता है। *[१] उसी तरह तारीख ५ रजब सन् ५४४ हिज्री (१४ अक्तूबर १५४२ ई॰) रविवार की रात्रि में उस मंगल नक्षत्र का उदय हुआ जो अन्त में दुनिया पर सूरज बनकर चमका।..."(पूरा पढ़ें)