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साहित्य और मनोविज्ञान प्रेमचंद द्वारा रचित साहित्य का उद्देश्य का एक अंश है जिसका प्रकाशन जुलाई १९५४ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।


"साहित्य का वर्त्तमान युग मनोविज्ञान का युग कहा जा सकता है। साहित्य अब केवल मनोरंजन की वस्तु नहीं है। मनोरंजन के सिवा उसका कुछ और भी उद्देश्य है। वह अब केवल विरह और मिलन के राग नहीं अलापता। वह जीवन की समस्याओं पर विचार करता है, उनकी आलोचना करता है और उनको सुलझाने की चेष्टा करता है।
नीति-शास्त्र और साहित्य का कार्य-क्षेत्र एक है, केवल उनके रचना विधान में अन्तर है। नीति-शास्त्र भी जीवन का विकास और परिष्कार चाहता है, साहित्य भी।..."(पूरा पढ़ें)