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हिन्दी साहित्य का माध्यमिककाल/तुलसीदास अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्वारा रचित पुस्तक हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास का एक अंश है। इस पुस्तक का प्रकाशन १९३४ ई॰ में पटना विश्वविद्यालय, पटना द्वारा किया गया था।


"गोस्वामी तुलसीदास जी की काव्य कला अमृतमयी है। उससे वह संजीवनी धारा निकली जिसने साहित्य के प्रत्येक अङ्ग को ही नवजीवन नहीं प्रदान किया वरन मृतक प्राय हिन्दू समाज के प्रत्येक अङ्ग को वह जीवनी शक्ति दी जिससे वह बड़े संकट-काल में भी जीवित रह सकी। इसीलिये वे हिन्दी संसार के सुधाधर हैं । गोस्वामीजी की दृष्टि इतनी प्रखर थी और सामयिकता की नाड़ी उन्हों ने इस मार्मिकता से टटोली कि उनकी रचनायें आज भी रुग्न मानसों के लिये रसायन का काम दे रही हैं। यदि केवल अपने-अलौकिक ग्रन्थ राम चरित मानस का ही उन्हों ने निर्माण किया होता तो भी उनकी वह कीर्ति अक्षुण्ण रहती जो आज निर्मल कौमुदी समान भारत-वसुन्धरा में विस्तृत है। किन्तु उनके और भी कई ग्रन्थ ऐसे हैं जिनमें उनकी कीर्ति-कौमुदी और अधिक उज्ज्वल हो गई है और इसीलिये वे कौमुदीश हैं। ब्रजभाषा और अवधी दोनों पर उनका समान अधिकार देखा जाता है।..."(पूरा पढ़ें)