विकिस्रोत:आज का पाठ/१३ नवम्बर
रणजीत सिंह प्रेमचंद द्वारा रचित १५ महापुरुषों के जीवन-चरित संग्रह कलम, तलवार और त्याग का एक अध्याय है। इसका पहला संस्करण १९३९ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था।
"रणजीतसिह का जन्म सन् १७८० ई० में गुजरानवाला स्थान में हुआ, आम खयाल है कि उनके पिता एक गरीब जमींदार थे, पर यह ठीक नहीं है। उनके पिता सरदार महानसिंह सकर चकिया मिसिल के सरदार और बड़े प्रभावशाली पुरुष थे। पर २७ ही वर्ष की अवस्था में स्वर्ग सिधार गये। रणजीतसिंह उस समय कुल जमा १० साल के थे और इसी उम्र में उनके सिर पर भयावह ज़िम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा। परन्तु अकबर की तरह वह भी प्रबन्ध और संगठन की योग्यता माँ के पेट से लेकर निकले थे, और इस दस वर्ष में ही कई लड़ाइयों में अपने पिता के साथ रह चुके थे। एक दिन एक भयानक युद्ध में वह बाल-बाल बचे। मानो उनका शैशव रणक्षेत्र में ही बीता और युद्ध के विद्यालय में ही उन्होने शिक्षा पाई। ८-१० साल का बच्चा, उसकी आँखों से नित्य मार-काट के दृश्ये गुजरते होंगे। कुटुम्ब के बड़े-बूढ़ों को चौपाल में बैठकर किसी पड़ोसी सरदार पर हमला करने के मंसूबे बाँधते या किसी बलवान् सरदार के आक्रमण से बचाव के उपाय सोचते देखता होगा और यह अनुभव उसके कोमल संस्कारपप्राही चित्र पर क्या कुछ छाप न छोड़ जाते होंगे! परवर्ती घटनाओं ने सिद्ध कर दिया कि यह अल्पवयस्क बालक तीक्ष्ण बुद्धि और प्रतिभावान् था, और जो शिक्षाएँ उसे मिलीं, उसके जीवन का अंग बन गई। उसने जो कुछ देखा, शिक्षा ग्रहण करने वाली दृष्टि से देखी। १२ वर्ष की अवस्था में बह सकर चकिया मिसिले के सरदार करार दिया गया और २० वें साल में कुछ अपनी बहादुरी और कुछ जोड़-होड़बाजी से लाहौर का राजा बन बैठा।..."(पूरा पढ़ें)