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नेटाल पहुंचा मोहनदास करमचंद गाँधी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग का एक अध्याय है। इस पुस्तक का प्रकाशन नई दिल्ली के सस्ता साहित्य मंडल द्वारा १९४८ ई. में किया गया था।


"दादा अब्दुल्लाके बंबईके एजेंटकी मार्फत मुझे टिकट लेना था। परंतु जहाजपर केबिन खाली न थी। यदि मैं यह चूक जाऊं तो फिर मुझे एक मासतक बंबईमें हवा खानी पड़े। एजेंटने कहा- "हमने तो खूब दौड़-धूप कर ली। हमें टिकट नहीं मिला। हां, डेकमें जायं तो बात दूसरी है। भोजनका इंतजाम सैलूनमें हो सकता है।" ये दिन मेरे फर्स्ट क्लासकी यात्राके थे। बैरिस्टर भला कहीं डेकमें सफर कर सकता है? मैंने डेकमें जानेसे इन्कार कर दिया। मुझे एजेंटकी बात पर शक भी हुआ। यह बात मेरे माननेमें न आई कि पहले दर्जेका टिकट मिल ही नहीं सकता। अतएव एजेंटसे पूछकर खुद मैं टिकट लाने चला। जहाजपर पहुंचकर बड़े अफसरसे मिला। पूछनेपर उसने सरल भावसे उत्तर दिया- "हमारे यहां मुश्किलसे इतनी भीड़ होती है। परंतु मोजांविकके गवर्नर जनरल इसी जहाजसे जा रहे हैं। इससे सारी जगह भर गई है।" "तब क्या आप किसी प्रकार मेरे लिए जगह नहीं कर सकते?" अफसरने मेरी ओर देखा, हंसा और बोला- "एक उपाय है। मेरी केबिनमें एक बैठक खाली रहती है। उसमें हम यात्रियोंको नहीं बैठने देते। पर आपके लिए मैं जगह कर देने को तैयार हूं।" मैं खुश हुआ। अफसरको धन्यवाद दिया व सेठसे कहकर टिकट मंगाया। १८९३ के अप्रैल मासमें मैं बड़ी उमंगके साथ अपनी तकदीर आजमानेके लिए दक्षिण अफ्रीका रवाना हुआ।..."(पूरा पढ़ें)