रामनाम/८
लोगोकी सेवा किये बिना या अुनके हितमे अपना हित माने बिना मोक्ष पाना मै असम्भव मानता हू।
हिन्दी नवजीवन, २१-१०-१९२६
सेवाकार्य या माला-जप?
स॰—सेवाकार्यके कठिन अवसरो पर भगवद्भक्तिके नित्य नियम नही निभ पाते, तो क्या अिसमे कोअी हर्ज है? दोनोमे से किसको प्रधानता दी जाय, सेवाकार्यको अथवा माला-जपको?
ज॰—कठिन सेवाकार्य हो या अुससे भी कठिन अवसर हो, तो भी भगवद्भक्ति यानी रामनाम बन्द हो ही नहीं सकता। अुसका बाह्य रूप प्रसगके मुताबिक बदलता रहेगा। माला छूटनेसे रामनाम, जो हृदयमे अकित हो चुका है, थोडे ही छूट सकता है?
हरिजनसेवक, १७-२-१९४६
भगवानकी मदद मांगो
मैं सारे हिन्दुस्तानके विद्यार्थियोके साथ होनेवाले अपने पत्रव्यवहारसे जानता हू कि ढेरो पुस्तको द्वारा पाये हुअे ज्ञानसे अपने दिमागोको भर कर वे कैसे पगु बन गये है। कुछ तो अपने दिमागका सतुलन खो बैठे है, कुछ पागल-से हो गये है, तो कुछ अनीतिकी राह पर चल पड़े है—जिससे वे अपने-आपको रोक नही सकते। अुनकी यह बात सुनकर मेरा हृदय सहानभूति और दयासे भर जाता है कि अधिकसे अधिक प्रयत्न करके भी वे अपने जीवनको बदल नही सकते। वे दुखी होकर मुझसे पूछते है "हमे बताअिये कि शैतानसे हम कैसे पिड छुडाये? जिस अनीति और अपवित्रताने हमे धर दबोचा है, अुससे हम अपने-आपको कैसे छुडाये?" जब मै अुन्हे रामनाम जपने और भगवानके सामने झुक कर अुसकी सहायता मागनेकी बात कहता हू, तो वे मेरे पास आकर कहते है "हम नही जानते भगवान कहा है? हम नही जानते प्रार्थना करना क्या होता है?" विद्यार्थियोकी आज अैसी दयनीय स्थिति हो गअी है।
तामिल भाषाका अेक वचन मै कभी भूलता नही। उसका अर्थ है "निराधारका आधार भगवान है।" अगर आप अुससे सहायताकी प्रार्थना करना चाहते है, तो आप अपने सच्चे रूपमे अुसके पास जाये, किसी तरहका सकोच या दुराव-छिपाव न रख अुसकी शरण ले और इस बातकी आशका न रखे कि आप जैसे अधम और पतितको वह कैसे सहायता दे सकता है—कैसे अुबार सकता है। जिसने अपनी शरण मे आये लाखो-करोडोकी सहायता की, वह क्या आपको असहाय छोड देगा? वह किसी तरहका पक्षपात और भेदभाव नही रखता। आप देखेगे कि वह आपकी हरअेक प्रार्थना सुनता है। अधमसे अधमकी भी प्रार्थना भगवान सुनेगा।[१] यह बात मै अपने अनुभवसे कहता हू। मै अिस नरककी यातनाओसे गुजर चुका हू। पहले आप भगवानकी शरण जाअिये और आपको सब कुछ मिल जायगा।
यग अिन्डिया, ४-४-१९२९
- ↑ लेकिन प्रार्थना केवल शब्दोकी या कानोकी कसरत ही नही है। वह किसी निरर्थक मत्र या सूत्रका जप नही है। अगर रामनाम आत्माको जाग्रत न कर सके, तो आप अुसका कितना भी जप क्यो न करे, सब व्यर्थ जायगा। यदि आप शब्दोके बिना भी हृदय से भगवानकी प्रार्थना करे, तो वह अुस प्रार्थनासे कही अच्छी है जिसमे शब्द तो बहुत है, परन्तु हृदय नही है। प्रार्थना अुस आत्माकी मागके स्पष्ट अुत्तरमे होनी चाहिये, जो हमेशा अुसकी भूखी रहती है। और जिस तरह भूखा आदमी स्वादिष्ठ भोजन पाकर प्रसन्न होता है, अुसी तरह भूखी आत्मा हार्दिक प्रार्थनासे आनन्दका अनुभव करती है। मै अपने और अपने साथियोके अनुभवसे यह बात कहता हू कि जिसने प्रार्थना के चमत्कारका अनुभव किया है, वह भोजनके बिना तो कअी दिनो तक रह सकता है, लेकिन प्रार्थनाके बिना अेक क्षण भी नही रह सकता। क्योकि प्रार्थनाके बिना आन्तरिक शान्ति नही मिलती।—यग अिंडिया, २३-१-१९३०