अहमदाबाद - १४: नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, पृष्ठ ४९

 

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गरीबोंके लिए कुदरती अिलाज

कुदरती अुपचारमे जीवन-परिवर्तनकी बात आती है। यह कोअी वैद्यकी दी हुई पुडिया लेनेकी बात नही है, और न अस्पताल जाकर मुफ्त या फीस देकर दवा लेने या अुसमे रहनेकी ही बात है। जो मुफ्त दवा लेता है, वह भिक्षुक बनता है। जो कुदरती अुपचार करता है, वह कभी भी भिक्षुक नही बनता। वह अपनी प्रतिष्ठा बढाता है और अच्छा बननेका अुपाय खुद ही कर लेता है। वह अपने शरीरमे से जहर निकालकर अैसी कोशिश करता है कि जिससे दुबारा बीमार न पड सके।

कुदरती अिलाजमे मध्यबिन्दु तो रामनाम ही है न? रामनामसे आदमी सब रोगोसे सुरक्षित बनता है। शर्त यह है कि नाम भीतरसे निकलना चाहिये। और, रामनामके भीतरसे निकलनेके लिए नियम-पालन जरूरी हो जाता है। अुस हालतमे मनुष्य रोग-रहित होता है। अिसमे न कष्टकी बात है, न खर्चकी। मोसम्बी खाना अुपाचरका अनिवार्य अग नही है।

पथ्य खाना––युक्ताहार लेना––अवश्य अनिवार्य अग है। हमारे देहात हमारी तरह ही कगाल है। देहातमे साग-सब्जी, फल, दूध वगैरा पैदा करना कुदरती अिलाजका खास अग है। अिसमे जो वक्त खर्च होता है, वह व्यर्थ तो जाता ही नही, बल्कि अुससे सभी देहातियोको और आखिरकार सारे हिन्दुस्तानको लाभ होता है।

हरिजनसेवक, २-६-१९४६