तब ये लता-लगति अति सीतल, अब भइँ विषम ज्वाल की पुंजैं॥
बृथा बहति जमुना, खग बोलत, बृथा कमल फूलैं, अलि गुंजैं।
पवन पानि घनसार सँजीवनि दधिसुत[१] किरन भानु भइँ भुंजैं[२]॥
ए, ऊधो, कहियो माधव सों बिरह कदन[३] करि मारत लुंजैं।
सूरदास प्रभु को मग जोवत अँखियाँ भईं बरन[४] ज्यों गुंजैं॥८५॥