भ्रमरगीत-सार/८३-हरि सों भलो सो पति सीता को

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११९

 

हरि सों भलो सो पति सीता को।

बन बन खोजत फिरे बंधु-सँग, कियो सिंधु बीता को[]
रावन मार्‌यो, लंका जारी, मुख देख्यो भीता[] को।
दूत हाथ उन्हैं लिखि न पठायो निगम-ज्ञान गीता को॥
अब धौं कहा परेखो कीजै कुबजा के मीता को।
जैसे चढ़त सबै सुधि भूली, ज्यों पीता चीता को[]?
कीन्हीं कृपा जोग लिखि पठयो, निरखु पत्र री! ताको।
सूरदास प्रेम कह जानै लोभी नवनीता को॥८३॥

  1. बीता को=बीते भर का।
  2. भीता=डरी हुई।
  3. पीता चीता को=किस पीनेवाले ने चेता अर्थात् किसी ने नहीं।