भ्रमरगीत-सार/८१-मधुकर रह्यो जोग लौं नातो

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११८

 

राग मलार
मधुकर रह्यो जोग लौं नातो।

कतहिं बकत बेकाम काज बिनु, होय न ह्याँ तें हातो[]
जब मिलि मिलि मधुपान कियो हो तब तू कहि धौं कहाँ तो।
तू आयो निर्गुन उपदेसन सो नहिं हमैं सुहातो॥
काँचे गुन[] लै तनु ज्यों बेधौ; लै बारिज को ताँतो।
मेरे जान गह्यो चाहत हौ फेरि कै भैगल[] मातो॥
यह लै देहु सूर के प्रभु को आयो जोग जहाँ तो।
जब चहिहैं तब माँगि पठै हैं जो कोउ आवत-जातो॥८१॥

  1. हातो=दूर, अलग।
  2. गुन=तागा।
  3. भैगल=मस्त हाथी।