भ्रमरगीत-सार/८१-मधुकर रह्यो जोग लौं नातो
मधुकर रह्यो जोग लौं नातो।
कतहिं बकत बेकाम काज बिनु, होय न ह्याँ तें हातो[१]॥
जब मिलि मिलि मधुपान कियो हो तब तू कहि धौं कहाँ तो।
तू आयो निर्गुन उपदेसन सो नहिं हमैं सुहातो॥
काँचे गुन[२] लै तनु ज्यों बेधौ; लै बारिज को ताँतो।
मेरे जान गह्यो चाहत हौ फेरि कै भैगल[३] मातो॥
यह लै देहु सूर के प्रभु को आयो जोग जहाँ तो।
जब चहिहैं तब माँगि पठै हैं जो कोउ आवत-जातो॥८१॥