भ्रमरगीत-सार/७०-तौ हम मानैं बात तुम्हारी

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११५

 

राग रामकली
तौ हम मानैं बात तुम्हारी।

अपनो ब्रह्म दिखावहु ऊधो मुकुट-पितांबरधारी॥
भजिहैं तब ताको सब गोपी सहि रहिहैं बरु गारी।
भूत समान बतावत हमको जारहु स्याम बिसारी॥
जे मुख सदा सुधा अँचवत हैं ते विष क्यों अधिकारी?
सूरदास प्रभु एक अंग पर रीझि रहीं ब्रजनारी॥७०॥