भ्रमरगीत-सार/७१-यहै सुनत ही नयन पराने

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११५

 

राग बिलावल
यहै सुनत ही नयन पराने।

जबहीं सुनत बात तुव मुख की रोवत रमत ढराने[]
बारँबार स्यामघन धन तें भाजत फिरन लुकाने।
हमकों नहिं पतियात तबहिं तें जब ब्रज आपु समाने॥
नातरु यहौ काछ हम काछति[] वै यह जानि छपाने।
सूर दोष हमरै सिर धरिहौ तुम हौ बड़े सयाने॥७१॥

  1. ढराने=ढले।
  2. काछ काछति= वेष धारण करती, चाल चलती।