बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १११
डरपति बचन कठोर कहति, मति बिनु पति यों उठि जात[१]। जो कोउ कहत जरे अपने[२] कछु फिरि पाछे पछितात। जो प्रसाद पावत तुम ऊधो कृस्न नाम लै खात॥ मन जु तिहारो हरिचरनन तर अचल रहत दिनरात। 'सूर स्याम तें जोग अधिक' केहि कहि आवत यह बात?॥५९॥