भ्रमरगीत-सार/५९-बिलग जनि मानौ हमरी बात

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १११

 

राग सारंग
बिलग जनि मानौ हमरी बात।

डरपति बचन कठोर कहति, मति बिनु पति यों उठि जात[]
जो कोउ कहत जरे अपने[] कछु फिरि पाछे पछितात।
जो प्रसाद पावत तुम ऊधो कृस्न नाम लै खात॥
मन जु तिहारो हरिचरनन तर अचल रहत दिनरात।
'सूर स्याम तें जोग अधिक' केहि कहि आवत यह बात?॥५९॥

  1. पति उठि जात=मर्यादा जाती रहती है।
  2. जरे अपने=अपना जी जलने पर।