भ्रमरगीत-सार/५८-मोहिं अलि दुहूं भाँति फल होत

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११०

 

राग मारू
मोहिं अलि दुहूं भाँति फल होत।

तब रस-अधर लेति मुरली, अब भई कूबरी सौत॥
तुम जो जोगमत सिखवन आए भस्म चढ़ावन अँग।
इन बिरहिन में कहुँ कोउ देखी सुमन गुहाये मंग[]?
कानन मुद्रा पहिरि मेखली धरे जटा आधारी।
यहाँ तरल तरिवन कहँ देखे अरु तनसुख[] की सारी॥
परम बियोगिनि रटति रैन दिन धरि मनमोहन-ध्यान।
तुम तो चलो वेगि मधुबन को जहाँ जोग को ज्ञान॥
निसिदिन जीजतु है या ब्रज में देखि मनोहर रूप।
सूर जोग लै घर घर डोलौ, लेहु लेहु धरि सूप॥५८॥

  1. मंग=माँग।
  2. तनसुख=एक कपड़ा।