भ्रमरगीत-सार/५७-निरखत अंक स्यामसुन्दर के बारबार लावति छाती

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११०

 

निरखत अंक स्यामसुन्दर के बारबार लावति छाती।

लोचन-जल कागद-मसि मिलि कै ह्वै गइ स्याम स्याम की पाती[]
गोकुल बसत संग गिरिधर के कबहुं बयारि लगी नहिं ताती।
तब की कथा कहा कहौं, ऊधो, जब हम बेनुनाद सुनि जाती॥
हरि के लाड़[] गनति नहिं काहू निसिदिन सुदिन रासरसमाती।
प्राननाथ तुम कब धौं मिलौगे सूरदास प्रभु बालसँघाती॥५७॥

  1. पाती=पत्री, चिट्ठी।
  2. लाड़=प्रेम।