भ्रमरगीत-सार/४८-फिरि फिरि कहा सिखावत बात

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०७

 

राग सारंग
फिरि फिरि कहा सिखावत बात?

प्रातकाल उठि देखत, ऊधो, घर घर माखन खात॥
जाकी बात कहत हौ हमसों सो है हमसों दूरि।
ह्याँ है निकट जसोदानँदन प्रान-सजीवनमूरि॥
बालक संग लये दधि चोरत खात खवावत ड़ोलत।
सूर सीस सुनि चौंकत नावहिं अब काहे न मुख बोलत?॥४८॥