भ्रमरगीत-सार/४७-लिखि आई ब्रजनाथ की छाप

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०६

 

राग सोरठ
लिखि आई ब्रजनाथ की छाप[]

बाँधे फिरत सीस पर ऊधो देखत आवै ताप॥
नूतन रीति नंदनंदन की घरघर दीजत थाप।
हरि आगे कुब्जा अधिकारी, तातें है यह दाप॥
आए कहन जोग अवराधो अबिगत-कथा की जाप।
सूर सँदेसो सुनि नहिं लागै कहौ कौन को पाप? ॥४७॥

  1. छाप=चिह्न, मुहर।