भ्रमरगीत-सार/४९-अपने सगुन गोपालै, माई! यहि बिधि काहे देत

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०७

 

राग धनाश्री
अपने सगुन गोपालै, माई! यहि बिधि काहे देत?

ऊधो की ये निरगुन बातैं मीठी कैसे लेत।
धर्म, अधर्म कामना सुनावत सुख औ मुक्ति समेत॥
काकी भूख गई मनलाडू सो देखहु चित चेत।
सूर स्याम तजि को भुस फटकै[] मधुप तिहारे हेत? ॥४९॥

  1. भुस फटकै=भूसी फटकारै अर्थात् भूसी में से कुछ सार निकालने का प्रयत्न करे।