बारक कान्ह करौ किन फेरो?
दरसन दै मधुबन को सिधारो, सुख इतनो बहुतेरो॥
भलेहि मिले बसुदेव देवकी जननि जनक निज कुटुँब घनेरो।
केहि अवलंब रहैं हम ऊधो! देखि दुःख नँद-जसुमति केरो॥
तुम बिनु को अनाथ-प्रतिपालन, जाजरि[१] नाव कुसँग सबेरो[२]।
गए[३] सिंधु को पार उतारै, अब यह सूर थक्यो ब्रज-बेरो[४]॥३३६॥