भ्रमरगीत-सार/३१९-कोकिल हरि को बोल सुनाव

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २०३

 

राग मलार

कोकिल! हरि को बोल सुनाव।
मधुबन तें उपटारि[] स्याम कहँ या ब्रज लै कै आव॥
जाचक सरनहि[] देत सयाने तन, मन, धन, सब साज।
सुजस बिकात बचन के बदले, क्यों न बिसाहत आज॥
कीजै कछु उपकार परायो यहै सयानो काज।
सूरदास प्रभु कहु या अवसर बन बन वसँत बिराज॥३१९॥

  1. उपटारि=उचाटकरि।
  2. सरनहि=शरण में आए याचक को।