भ्रमरगीत-सार/३१८-सबन अबध सुंदरी बधै जन
राग अड़ानो
सबन अबध[१], सुंदरी बधै जनि।
मुक्तामाल, अनंग! गंग नहिं, नवसत[२] साजे अर्थ-स्यामघन॥
भाल तिलक उडुपति न होय यह, कबरि-ग्रँथि अहिपति न सहस-फन।
नहिं बिभूति दधिसुत न भाल जड़! यह मृगमद चंदन-चर्चित तन॥
न गजचर्म यह असित कँचुकी, देखि बिचारि कहाँ नंदीगन।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस बिनु बरबस काम करत हठ हम सन[३]॥३१८॥