भ्रमरगीत-सार/३०२-यहि डर बहुरि न गोकुल आए
यहि डर बहुरि न गोकुल आए।
सुन री सखी! हमारी करनी समुझि मधुपुरी छाए॥
अधरातिक तें उठि बालक सब मोहिं जगै हैं आय।
बिनु पदत्रान बहुरि पठवैंगी बनहिं चरावन गाय॥
सूनो भवन आनि रोकैगी चोरत दधि नवनीत।
पकरि जसोदा पै लै जैहैं, नाचति गावति गीत॥
ग्वालिनि मोहिं बहुरि बाँधैंगी केते बचन लगाय।
एते दुःखन सुमिरि सूर मन, बहुरि सहै को जाय॥३०२॥