भ्रमरगीत-सार/३०१-मधुकर जोग न होत सँदेसन

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १९५ से – १९६ तक

 

राग सारंग

मधुकर! जोग न होत सँदेसन।
नाहिंन कोउ ब्रज में या सुनिहै कोटि जतन उपदेसन।
रबि के उदय मिलन चकई को संध्या-समय अँदेस[] न।
क्यों बन बसैं बापुरे चातक, बधिकन्ह काज बधे सन॥

नगर एक नायक बिनु सूनो, नाहिंन काज सबै सन।
सूर सुभाय मिटत क्यों कारे जिहि कुल रीति डसै सन॥३०१॥

  1. रवि के...अँदेस न=संध्या समय जब वियोग होता है, तब इसमें संदेह नहीं रहता कि सूर्योदय होने पर फिर मिलन होगा।