भ्रमरगीत-सार/३०३-तब तें बहुरि न कोऊ आयो

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १९६

 

तब तें बहुरि न कोऊ आयो।
वहै जो एक बार ऊधो पै कछुक सोध सो पायो॥
यहै बिचार करैं, सखि, माधव इतो गहरु क्यों लायो।
गोकुलनाथ कृपा करि कबहूँ लिखियौ नाहिं पठायो॥
अवधि आस एती करि यह मन अब जैहै बौरायो।
सूरदास प्रभु चातक बोल्यो, मेघन अम्बर छायो॥३०३॥