भ्रमरगीत-सार/२९८-ए सखि आजु की रैनि को दुख कह्यो न कछु मोपै परै
ए सखि! आजु की रैनि को दुख कह्यो न कछु मोपै परै।
मन राखन[१] को बेनु लियो कर, मृग थाके उडुपति न चरै[२]॥
वाही प्राननाथ प्यारे बिनु सिव-रिपु[३]-बान नूतन जो जरै।
अति अकुलाय बिरहिनी ब्याकुल भूमि-डसन-रिपु भख न करै॥
अति आतुर ह्वै सिंह लिख्यो कर जेहि भामिनी को करुन टरै।
सूरदास ससि को रथ चलि गयो, पाछे; तें रबि उदय करै॥२९८॥