भ्रमरगीत-सार/२९६-आजु घन स्याम की अनुहारि

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १९३

 

आजु घन स्याम की अनुहारि।
उनै आए साँवरे, ते सजनी! देखि रूप की आरि॥
इंद्रधनुष मनो नवल बसन छवि, दामिनि दसन बिचारि।
जनु बगपाँति माल मोतिन की, चितवत हितहि निहारि॥
गरजत गगन, गिरा गोबिंद की सुनत नयन भरे बारि।
सूरदास गुन सुमिरि स्याम के बिकल भईं ब्रजनारि॥२९६॥