भ्रमरगीत-सार/२८९-हमको सपनेहू में सोच

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १९१

 

हमको सपनेहू में सोच।
जा दिन तें बिछुरे नँदनँदन ता दिन तें यह पोच॥
मनो गोपाल आए मेरे घर, हँसि करि भुजा गही।
कहा करौं बैरिनि भइ निंदिया, निमिष न और रही॥
ज्यों चकई प्रतिबिंब देखिकै आनंदी[] पिय जानि।
सूर, पवन मिस निठुर बिधाता-चपल कर्‌यो जल आनि॥२८९॥

  1. आनंदी=आनंदित हुई।