भ्रमरगीत-सार/२६२-मधुकर आवत यहै परेखो
राग सारंग
मधुकर! आवत यहै परेखो।
जब बारे तब आस बड़े की, बड़े भए सो देखो!
जोग-जज्ञ, तप, दान, नेम-ब्रत करत रहे पितु-मात।
क्यों हूँ सुत जो बढ्यो कुसल सों, कठिन मोह की बात॥
करनी प्रगट प्रीति पिक-कीरति अपने काज लौं भीर।
काज सर्यो दुख गयो कहाँ धौं, कहँ बायस को बीर॥
जहँ जहँ रहौ राज करौ तहँ तहँ लेव कोटि सिर भार।
यह असीस हम देति सूर सुनु न्हात खसै[१] जनि बार॥२६२॥
- ↑ खसै=टूटकर गिरे।