भ्रमरगीत-सार/२६१-मधुकर अब धौं कहा कर्‌यो चाहत

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १७९ से – १८० तक

 

राग सोरठ।
मधुकर! अब धौं कहा कर्‌यो चाहत?
ये सब भईं चित्र की पुतरी सून्य सरीरहिं दाहत॥

हमसों तोसों बैर कहा, अलि, स्याम अजान ज्यों राहत।
झारि झूरि मन तो हरि लै गए बहुरि पयारहि[] गाहत[]
अब तौ तोहिं मरुत को गहिबो कह स्रम करि तू लैहै?
सूर कोट-मध्य तू ह्वै रह, अपनो कियो तू पैहै॥२६१॥

  1. पयार=पयाल, अनाज के पौधों के सूखे डंठल।
  2. गाहना=डंडे से उलट पलटकर झाड़ना