भ्रमरगीत-सार/२४१-ऊधो हमैं जोग नहिं भावै
चित में बसत स्यामघन सुन्दर, सो कैसे बिसरावै?
तुम जो कही सत्य सब बातें, हमरे लेखे धूरि।
या घट-भीतर सगुन निरँतर रहे स्याम भरि पूरि॥
पा लागौं कहियो मोहन सों जोग कूबरी दीजै।
सूरदास प्रभु-रूप निहारैं हमरे संमुख कीजै॥२४१॥