बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १७१
चित चुभि रही साँवरी मूरति, जोग कहा तुम लाए? पा लागौं कहियो हरिजू सों दरस देहु इक बेर। सूरदास प्रभु सों बिनती करि यहै सुनैयो टेर॥२४०॥