भ्रमरगीत-सार/२४०-ऊधो होत कहा समुझाए

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १७१

 

उधो! होत कहा समुझाए?

चित चुभि रही साँवरी मूरति, जोग कहा तुम लाए?
पा लागौं कहियो हरिजू सों दरस देहु इक बेर।
सूरदास प्रभु सों बिनती करि यहै सुनैयो टेर॥२४०॥