भ्रमरगीत-सार/२४२-ऊधो हम न जोगपद साधे

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १७१

 

ऊधो! हम न जोगपद साधे।

सुन्दरस्याम सलोनो गिरिधर नँदनँदन आराधे॥
जा तन रचि रचि भूषन पहिरे भाँति भाँति के साज।
ता तन को कहै भस्म चढ़ावन, आवत नाहिंन लाज॥
घट-भीतर नित बसत साँवरो मोरमुकुट सिर धारे।
सूरदास चित तिन सों लाग्यो, जोगहिं कौन सँभारे?॥२४२॥