भ्रमरगीत-सार/२१-गोकुल सबै गोपाल-उपासी

भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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राग केदार
गोकुल सबै गोपाल-उपासी।

जोग-अंग साधत जे ऊधो ते सब बसत ईसपुर कासी॥
यद्यपि हरि हम तजि अनाथ करि तदपि रहति चरननि रसरासी[१]
अपनी सीतलताहि न छाँड़त यद्यपि है ससि राहु-गरासी।
का अपराध जोग लिखि पठवत प्रेमभजन तजि करत उदासी[२]
सूरदास ऐसी को बिरहिन माँगति मुक्ति तजे गुनरासी?॥२१॥

  1. रासी=रसी या पगी हुई।
  2. उदासी=विरक्त।