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दरस परस दिनरात करति हैं कान्ह पियारे पी को॥ नयनन मूँदि मूँदि किन देखौ बँध्यो ज्ञान पोथी को। आछे सुंदर स्याम मनोहर और जगत सब फीको॥ सुनौ जोग को का लै कीजै जहाँ ज्यान[२] है जी को? खाटी सही नहीं रुचि मानै सूर खवैया घी को॥२२॥