भ्रमरगीत-सार/२०८-ऊधो क्यों आए ब्रज धावते

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १६०

 

राग गौरी
ऊधो! क्यों आए ब्रज धावते?

सहायक, सखा राजपदवी मिलि दिन दस कछुक कमावते॥
कह्यो जु धर्म कृपा करि कानन सो उत बसिकै गावते।
गुरू निवर्त्ति देखि आँखिन जे स्रोता सकल अघावते।
इत कोउ कछू न जानत हरि बिन, तुम कत जुगुति बनावते?
जो कछु कहत सबन सों तुम सो अनुभव कै सुख पावते॥
मनमोहन बिन देखे कैसे उर सों औरहिं चाहते?
सूरदास प्रभु दरसन बिनु वह बार बार पछितावते॥२०८॥