भ्रमरगीत-सार/२०७-ऊधो तुम कहियो हरि सों जाय हमारे जिय को दरद

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १६०

 

राग बिलावल
ऊधो! तुम कहियो हरि सों जाय हमारे जिय को दरद।

दिन नहिं चैन, रैन नहिं सोवत, पावक भई जुन्हैया सरद॥
जब ते अक्रूर लै गए मधुपुरी, भई बिरह तन बाय[] छरद[]
कीन्हीं प्रबल जगी अति, ऊधो! सोचन भइ जस पीरी हरद[]
सखा प्रवीन निरंतर हौ तुम ताते कहियत खोलि परद[]
काथ रूप दरसन बिन हरि के सूर मूरि नहिं हियो सुरद[]॥२०७॥

  1. बाय=बाई।
  2. छरद=छर्दि, वमन।
  3. हरद=हलदी।
  4. परद=परदा।
  5. सुरद=सुहृद।