भ्रमरगीत-सार/२०६-ऊधो तुम आए किहि काज

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५९ से – १६० तक

 

राग सारंग
ऊधो! तुम आए किहि काज?

हित की कहत अहित की लागत, बकत न आबै लाज॥
आपुन को उपचार करौ कछु तब औरनि सिख देहु।
मेरे कहे जाहु सत्वर ही, गहौ सीयरे गेहु[]
हाँ भेषज नानाबिधि के अरु मधुरिपु से हैं बैदु।
हम कातर डराति अपने सिर कहुँ कलँक ह्वै कैदु[]

साँची बात छाँड़ि अब झूठी कहौ कौन बिधि सुनि हैं?
सूरदास मुक्ताफलभोगी हंस बह्नि[] क्यों चुनिहैं?॥२०६॥

  1. गहौ सियरे गेहु=ठंढे ठंढे घर का रास्ता पकड़ो अर्थात् चुपचाप घर जाओ।
  2. कैदु=कदाचित्।
  3. बह्नि=आग।