भ्रमरगीत-सार/१९-तू अलि! कासों कहत बनाय

भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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राग सारंग
तू अलि! कासों कहत बनाय?

बिन समुझे हम फिरि बूझति हैं एक बार कहौ गाय॥
किन वै गवन कीन्हों सकटनि चढ़ि सुफलकसत के संग।
किन वै रजक लुटाइ बिबिध पट पहिरे अपने अंग?
किन हति चाप निदरि गज मार्‌यो किन वै मल्ल मथि जाने[१]?
उग्रसेन बसुदेव देवकी किन वै निगड़ हठि भाने[२]?
तू काकी है करत प्रसंसा, कौने घोष[३] पठायो?
किन मातुल बधि लयो जगत जस कौन मधुपुरी छायो?
माथे मोरमुकुट बनगुंजा, मुख मुरली-धुनि बाजै।
सूरदास जसोदानंदन गोकुल कह न बिराजै ॥१९॥

  1. मथि जाने=पछाड़ा।
  2. निगढ़ भाने=बेड़ी तोड़ी।
  3. घोष=अहीरों की बस्ती।