भ्रमरगीत-सार/१८-हमसों कहत कौन की बातें

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ९५ से – ९६ तक

 

राग धनाश्री
हमसों कहत कौन की बातें?

सुनि ऊधो! हम समुझत नाहीं फिरि पूँछति हैं तातें॥
को नृप भयो कंस किन मार्‌यो को वसुद्यौ-सुत आहि?
यहाँ हमारे परम मनोहर जीजतु हैं मुख चाहि[]

दिनप्रति जात सहज गोचारन गोप सखा लै संग।
बासरगत रजनीमुख[] आवत करत नयन-गति पंग[]
को ब्यापक पूरन अबिनासी, को बिधि-बेद-अपार?
सूर बृथा बकवाद करत हौ या ब्रज नंदकुमार॥१८॥

  1. चाहि=देखकर।
  2. रजनीमुख=संध्या।
  3. पंग=स्तब्ध।